UTTARKASHI : उत्तरकाशी का पौराणिक इतिहास

उत्तरकाशी का पौराणिक इतिहास

 बड़ाहाट उत्तरकाशी

उत्तर की काशी अथवा बड़ाहाट या सौम्यकाशी के नाम से प्रसिद्ध यह नगर धार्मिक ही नहीं अपितु ऐतिहासिक सांस्कृतिक एवं नैसर्गिक छवि के लिए जाना जाता है | यह जनपद भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की रीढ़ कहे जाने वाली जीवनदायिनी माँ गंगा एवं माँ यमुना नदियों का उद्गम जनपद भी है | वर्तमान में उत्तरकाशी के नाम से प्रचलित यह नगर पूर्व में बड़ाहाट गांव के नाम से प्रसिद्ध रहा है |

पूर्व में टिहरी रियासत के अंतर्गत रहा यह जनपद, भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी कुछ समय तक यह टिहरी जनपद के अंतर्गत रहा, तब तक यह बड़ाहाट गांव के नाम से ही जाना जाता था, 24 फरवरी 1960 में पृथक जनपद बनाने के बाद बड़ाहाट को उत्तरकाशी के नाम से जाना जाने लगा, फिर भी राजस्व अभिलेखों में आज भी यह नगर बड़ाहाट के नाम से ही जाना जाता है | बड़ाहाट को सुप्रसिद्ध लेखक विश्लेषक राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत भारत के वस्तुविनियम व्यापार का केंद्र का आधार मानते हुए बड़ा+हाट के रूप में होने से इसे बड़ाहाट कह कर उल्लिखित किया है |

कौशतीक ब्राह्मण के अनुसार यह वैदिक संस्कृति एंव सभ्यता का सर्वोत्कृष्ट केन्द्र रहा, एतरेय उपनिषद के अनुसार यहाँ पूर्व में प्रसिद्ध योद्धा जाति किरात, उत्तरीकुरू, दास, तंगण कुलिंद तथा परतंगण जातिया इसी क्षेत्र में निवास करती थी ऐसा कतिपय शोधार्थियों का मानना है | कतिपय शोधार्थियों के अनुसार यह नगर कभी एक समृद्ध राजधानी थी जिसे ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था शायद यही कालान्तर में अपभ्रंस होकर बड़ाहाट के नाम से प्रसिद्ध हुआ हो | राहुल सांकृत्यायन के अनुसार हाट का अर्थ राजधानी से प्रसिद्ध हुआ हो | राहुल सांकृत्यायन के अनुसार हाट का अर्थ राजधानी से भी और बाज़ार से भी और बाजार से भी है | पूर्व में बड़ाहाट भारत तिब्बत के वस्तु विनियम व्यापारिक केन्द्र भी रहा है |

  नगर का हृदय कहा जाने वाला बड़ाहाट आज विकास के पथ पर अग्रसरित है | यह नगर साधु सन्यासियों की तपस्थली के रूप में तो प्रसिद्ध रहा ही प्रकृति प्रेमियों,शैलानियो , शोधार्थियों एवं पर्वतारोहीयों का पसन्दीदा नगर भी है | उच्च हिमालयी चोटियों पर पर्वतारोहण के शौक़ीन लोगो के प्रशिक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा यहाँ नेहरू पर्वतारोहण संस्थान जो देश विदेशी पर्वतारोहियों के प्रशिक्षण का सुप्रसिद्ध केन्द्र हैं | भले ही यह जनपद टिहरी नरेशों के अधीन रहा हो परन्तु भारत में गंगा यमुना तहजीव को स्थापित करने में इस जनपद से निकली गंगा –यमुना की अमृतमय धारा का रस पान कर इस संस्कृति का पोषण समाज में होता रहा |

यह जनपद  गंगा एवं यमुना घाटी के रूप में जाना जाता है | गंगाघाटी नगुण से गंगोत्री तथा चीन सीमा तक तथा यमुना घाटी (रवांई) यमनोत्री से नैनबाग तक का भू –भाग तथा एक छोर हिमाचल प्रदेश की सीमा तक है | उत्तरकाशी  अर्थात उत्तर की काशी, मोक्ष नगरी बनारस का जो स्थान हमारे धर्मशास्त्रों में वर्णित है, वही स्थान इस उत्तरकाशी का भी है | स्कन्द पुराण में इसकी महता का वर्णन करते हुए कलियुग में त्रिदेवों का निवास स्थान इसी उत्तरकाशी को कहा है |

Glimpse of Uttarkashi